तेरी आँखों का रंग री राधा
होरी के रंग जैसा है
तेरे संग हर रंग री राधा
सुन्दर सपन अनोखा है
किस धुन में रहते हो केशव
तुमको पीड़ नहीं डसती
विरह की रजनी चाँद में छुपकर
तुम पर तंज नहीं कसती
तुम राधे भाव को जानो री
मैं तुम तक सीमित हूँ
मुझको कुछ भी भान नहीं
मैं सहज तुम्हीं में हूँ
कोई व्यथा कोई पीड़ा
मुझको तुमसे क्यूँ ही हो
मेरी तो हर धुन की रागिनी
तुम हो राधे, तुम ही तो हो
क्यूं तुम विरह का गान करो
जब विरह की कोई वजह नहीं
तुम मुझ में बहती हो अविरल
कुछ और राग कोई जिरह नहीं
राधे, मुझको ना देखोगी
प्रेम नहीं कर पाओगी?
आँख मूंद के देखो राधे
क्या तुम न मुस्काओगी?
हे कृष्ण !
तुम थे छलिया तुम हो छलिया
तुम विरह न प्रेम की बात करो
तुम पथ पर बढ़ जाओ केशव
राधा में ना मगन बहो
मैं तुमसे परिपूर्ण हूँ माधव
तुम मुझसे क्या पा लोगे?
मेरी निश्छल विरह सांवरे
प्रेम कहां ही पा लोगे?
तुम रहे कृष्ण के कृष्ण !
कहो कैसे राधे कहलाओगे
“मेरे रंग ना रंग जाना माधव
रंगहीन रह जाओगे”
~ नवीन कुमार ‘जन्नत’