“रे कृष्ण !
नज़र भर लौट आते
कितनी आँखें रस्ते पाते
सखियाँ विरही व्याकुल
रही तरस वेदना विषतुल
ना मेरे प्रेम की राखो
आ जाओ इनके नाते
मैं ना देखूँगी तुमको
मैं पास नहीं आऊँगी
रे कृष्ण हृदय भर लो !
हे कृष्ण नज़र कर लो !”
रही तरस वेदना विषतुल
ना मेरे प्रेम की राखो
आ जाओ इनके नाते
मैं ना देखूँगी तुमको
मैं पास नहीं आऊँगी
रे कृष्ण हृदय भर लो !
हे कृष्ण नज़र कर लो !”
“मैं प्रेम करूं साचा राधे
पर तुम बिन मैं आधा राधे
आधे से प्रीति कहाँ उनको
मिथ्या बैराग भरा राधे
राधे री विरह नहीं होता
गर प्रेम रहे पल भर राधे
सखियाँ तुम में ही देखेंगी
अब कृष्ण तुम्हीं में है राधे”
- नवीन कुमार ‘जन्नत’