“किस रीति में सखी राधिका प्रेम व्रत से तोला जाये
लाख रहे कोई तन में पर मन में कौन ही थाह पाये
तुम विचलित ना हो जाना जब तन पर अधिकार करे कोई
तुम मन ही मन मुस्काना जब सारी हद पार करे कोई
मैं रहूँ करोड़ों कोस दूर पर मुझमें बस तुम ही तो हो
तुम तको चाँद जिस भी वर को पर मेरा प्राण तुम्हीं तो हो”
“तुम रहने दो बस रहने दो, जो है वो ही जी लेने दो
औरत होना आसान कहाँ, हे कृष्ण ! भूल ही लेने दो”
- नवीन कुमार ‘जन्नत’