कितना कुछ

कितना कुछ पा कर खो देना 
कितना कुछ खो कर रो लेना 
कितना पास  कर दूर जाना 
कितना दूर जा कर भूल जाना
कितना कहना की साथ ही हैं
कितना सहना की साथ क्यूं हैं
कितनी बातें दिन भर हंसना
कितना चुप रहना नम रहना
कितना आवारा सा बहना
कितना सहमा सहमा रहना
कितने वादे कितनी कसमें
कितनी बुझी दबी यादें
कितनी बेफ़िक्री बेकारी 
कितना सन्नाटा होशियारी
कितना तब था कितना अब हूं 
मैं जीवन भर क्या ये सब हूं ?

नवीन कुमार ‘जन्नत’