दाग | Poetry | Naveen Kumar Jannat

खुद से इतना लड़ो की साफ़ हो जाओ
आग हो जाओ या महज़ ख़ाक हो जाओ

इतना उठ जाओ की जंगल की आग हो जाओ
इतना गिर जाओ की हड्डी की राख हो जाओ

अपनी नज़रों में समां याद रखो सूरतें बुनो
आईना तोड़ दो की खुद को माफ़ हो जाओ

जवानी जात ही ऐसी है ‘जन्नत’ क्या कहने
दुआ है चाँद चुनो और दाग हो जाओ