खुद से इतना लड़ो की साफ़ हो जाओ
आग हो जाओ या महज़ ख़ाक हो जाओ
इतना उठ जाओ की जंगल की आग हो जाओ
इतना गिर जाओ की हड्डी की राख हो जाओ
अपनी नज़रों में समां याद रखो सूरतें बुनो
आईना तोड़ दो की खुद को माफ़ हो जाओ
जवानी जात ही ऐसी है ‘जन्नत’ क्या कहने
दुआ है चाँद चुनो और दाग हो जाओ