गर्दिशें | Poetry | Naveen Kumar Jannat

तुम्हारी गर्दिशें कराहेंगी
हरकतें खंगाली जायेंगी
ना सम्भाले सम्भाली जायेंगी
बहुत बातें उछाली जायेंगी

एक पल में तबाह हो जाओगे
कमी ऐसी निकाली जायेंगी
तुमने जो सबसे छुपाये रखी
वही खबरें उगाली जायेंगी

तुमने लोहे पे सर दे मारा है
दलीलें सारी खाली जायेंगी
जरा सी देर कर दी तुमने साथी
अब तो रिश्वत भी ना ली जायेंगी

कहो ‘जन्नत’ तुम्हारी आँखों से
कैसे पिछली दीवाली जायेंगी