स्पर्श : संस्मरण

माँ, शब्द में ही कुछ ऐसा ख़ास है की अहसास छू लेता है। क्यूंकि हमें हमारा बचपन याद नहीं रहता तो कंही न कंही हम उस अहसास को पूरा नहीं समझ पाते की माँ से आखिर इतना अगाढ़ रिश्ता कैसे बन जाता है। जब हम खुद को उनकी जगह पाते हैं तो धीरे धीरे समझ आता है। ऐसा ही एक छोटा सा अनुभव सांझा कर रहा हूँ। यूं तो माता पिता दोनों का ही रिश्ता ऐसा होता है लेकिन जो लाड और स्नेह माँ से मिले उसका शायद कोई और विकल्प होता ही नहीं है।

बेटा सोया हुआ था। निश्चिंत अपनी माँ की स्नेह छाया में लिप्त सिमटा हुआ सा ऐसे की दुनिया भर को बाहों में भर के सोया हो। भार्या श्री का स्नेह अपने पुत्र के लिए वक़्त के हर बीते लम्हे के साथ थोड़ा बढ़ ही जाता है। दोनों ईश्वर की कृपा से भरपूर सुखद नींद में थे। मैं कमरे के एक कोने में बैठकर अपने संगणक पर कुछ काम कर रहा था और हर पल मेरा सारा ध्यान इसी पर था की कंही ये उठ न जाए आधी नींद से। एक पल को अचानक से बेटे की आँख खुल गयी और ये उठ कर बैठ गया। जब ये ऐसे बैठा तो इसकी पीठ अपनी माता की तरफ हो गई। कुछ पल के लिए ये एकदम चुप चाप अँधेरे में टकटकी लगाए बैठा रहा। अब इसने अहसास किया की माँ नहीं दिख रही हैं तो ये एक दम से गर्दन घुमा फिरा कर इधर उधर देखने की कोशिश करने लगा। जब इसको माँ नजर नहीं आयी तो थोड़ा अधीर हो गया। चेहरे का भाव भांप कर मैं जल्दी से उठ कर इसके पास गया। इसने मुझे देखा और एक पल के लिए थम गया। कुछ पल मुझे सवाल भरी नज़रों से देखने के बाद इसने फिर अपनी माता श्री को खोजना शुरू कर दिया। अपनी नन्ही दुलत्तियों से खिसकता हुआ ये मेरी तरफ बढ़ा। मैंने दोनों बाहों मैं उठाने के लिए हाथ सहर्ष बढाए तो ये मेरे पास आकर रुक गया। अब जब ये रुका तो इसका ध्यान पीछे सोयी हुई अपनी माँ पर गया। उस एक पल को मैं जीवन भर नहीं भूल पाऊंगा जब ये दुरुत गति से वापिस लुढ़कते हुए अपनी माँ की तरफ लपका। अपनी माँ को देखते ही इसके चेहरे पर जो पहला भाव आया वो इतना सुन्दर था की शायद साहित्य में इसकी व्याख्या संभव ही न हो। वो क्षण पर की सुकून भरी मुस्कान इस एक साल के बच्चे के चेहरे पर देखकर ये समझ आया की माँ का रिश्ता और किसी भी रिश्ते से प्रगाढ़ होता है। ये तुरंत अपनी माँ की तरफ लपका और जैसे ही इसका पहला स्पर्श हुआ, ये वंही लुढ़क कर फिर निश्चिंत सो गया। ये जो माँ का स्नेह भर स्पर्श है, यही माँ को दुनिया भर के किसी भी रिश्ते से दूर एक ऐसा अहसास देता है जो अकथनीय और अतुलनीय है परन्तु जीवंत है।

~ प्रत्येक माँ को सादर समर्पित