बादल तुम किस विध आये हो आज पिया को आस नहीं
बहुत पुकारा था तुमको जब पड़ी प्यास अब प्यास नहीं
अब न कोई सावन मतलब का ना कोई रंग पिया का
शेष पिया को तुम देखोगे विरह न वस्ल-व-श्वास नहीं
जाओ बादल तुम बरसो मदमस्त रंगीन फजाओं में
अपना जल भूतल कर दो और देखो रंग रज भावों में
फिर आते में मिलते जाना जब तुम खाली हो आओ
तब तक तुम क्या समझोगे क्या पीड़ पिया को पाँवों में
- नवीन कुमार “जन्नत”