उसने हँसकर बात क्या की हम दीवाने हो लिये
उस बखत के बाद से हम भी सियाने हो लिये
उस बखत के बाद से हम भी सियाने हो लिये
अब ना कोई रंग कोई राग दिल तक आ रहा
मअस्सला ये भी है कि अब हम पुराने हो लिये
इक दिन में नौकरी है तो आराम ही आराम है
इक रात है कि यूँ कटे जैसे ज़माने हो लिये
जानते थे लोग जो घर को कहाँ फ़ुरसत उन्हें
और जो फ़ुरसत में हैं वो घर जलाने हो लिये
बे काम की बातें नहीं करता है हमसे अब कोई
बे नाम की बातों के ‘जन्नत’ हम निशाने हो लिये
~ नवीन कुमार ‘जन्नत’