बहुत सुन्दर रात है,
कहीं बाहर निकल कर
दूर तक घूम आने का मन है,
तुम आओ तो,
साथ चलते हैं
खुले आसमान में ,
अँधेरे में,
बिना हाथ पकडे,
बिना बात किये,
बस हवा को छूने देते हैं
आ चलते हैं, ढूँढने
"जिंदगी किधर गयी,
कुछ बचा भी है...
या गुजर गयी"
- नवीन कुमार ‘जन्नत’