हद करती हो | Kaho Jannat

यही कहा था मत करना तुम
तुम कर बैठी हो
खुद कहती थी तुम ही अलग हो
ना, तुम सब जैसी हो
मन सालों की दूरी से कब टूटा करते हैं
हाँ, तन अक्सर ही होले से मन झूठा करते हैं
अब कैसे माना जाये जो कहती रहती हो
“हद करती हो”

दिल तोड़ोगी और कहोगी चलती हूँ
पसंद भले हो प्यार नहीं कर सकती हूँ
“हद करती हो”

- नवीन कुमार ‘जन्नत’