तुम मेरी अभिलाषा | Kaho Jannat | Poetry

ओढ चुनरी तेरी मैं सो जाता
तू रखती उंगली होठो पर
मैं चुप भी हो जाता
तू माथा चूम के कह देती
कि राह बदलनी है
मैं रखकर जान सिरहाने तेरे
दुनिया से खो जाता
ये कैसा अपराध किया री
जिंदा दिल बरबाद किया री
मैं तेरी इबादत करता रहा
तू हां हां भी भरता रहा
अब पूछा जब मैं कौन तेरा
तो टूटा है री मौन मेरा
मैं अश्क तेरा तू इश्क मेरा
इतनी परिभाषा याद रहे
मैं याद रहूँ तुझे ना भी रहूँ
तुम मेरी अभिलाषा याद रहे

- नवीन कुमार ‘जन्नत’