आज फिर हमसे ना हो पायेगा
ये निभाना विभाना कब तलक चलायेगा
दिल अगर जान ही गया है तुम्हें
बेचारा कितनी रोजें धड़कने सुखायेगा
चलो ये मान लें बेहतर मिला होगा अबके
क्या उतनी बेहतरी से इश्क ठहर पायेगा
अभी चेहरे से मोहब्बत टपक रही होगी
मगर एक दिन तुम्हें वो भी तो जान जायेगा
हम दिल समेट रहें हैं, वगर एक बार फिर से
हमीं से क्या हमारा हश्र संभल पायेगा
- नवीन कुमार ‘जन्नत’
“Soulful Hindi & Urdu Shayari, English poetry, reflective articles & quotes by Naveen Kumar Jannat capturing life, love, nostalgia.”