बेहतर मिला होगा अबके | Poetry

आज फिर हमसे ना हो पायेगा
ये निभाना विभाना कब तलक चलायेगा

दिल अगर जान ही गया है तुम्हें
बेचारा कितनी रोजें धड़कने सुखायेगा

चलो ये मान लें बेहतर मिला होगा अबके
क्या उतनी बेहतरी से इश्क ठहर पायेगा

अभी चेहरे से मोहब्बत टपक रही होगी
मगर एक दिन तुम्हें वो भी तो जान जायेगा

हम दिल समेट रहें हैं, वगर एक बार फिर से
हमीं से क्या हमारा हश्र संभल पायेगा

- नवीन कुमार ‘जन्नत’