मशहूर हो रहा हूँ | Poetry | Kaho Jannat

कुछ तंग हो रहा हूँ
मैं रंज बो रहा हूँ

मैं जानने निकला था
जाने को हो रहा हूँ

खुद से ही बेवफा हूँ
खुद को ही ढो रहा हूँ

संयम सिमट रहा है
मैं खत्म हो रहा हूँ

‘जन्नत’ तो ये नहीं है
क्यूँ दफ़्न हो रहा हूँ

चल फिर कहीं चलते हैं
यहां ‘मशहूर’ हो रहा हूँ

- नवीन कुमार ‘जन्नत’