दूरियाँ ख़ास-सी करते रहना
अपनी तस्वीर बदलते रहना
चाँद को बख्श देना नासमझ है
रात भर आप चमकते रहना
सुबहें इंतज़ार वाली हैं
देर का दर्द समझते रहना
मेरे इकरार को दिल में रखके
मेरे जज़्बात परखते रहना
मुझे मिलने की इजाज़त ना दो
शाम को आप टहलते रहना
लौट आना तो बेक़रारी में
जान ‘जन्नत’ से गुजरते रहना
- नवीन कुमार ‘जन्नत’