ज़िंदगी कौन जान पाया ज़रूरत क्या है
यूँ तो धरती से भी दिखता है, चाँद गोल ही होगा
कभी सपने मेरे बाज़ारों में बिकते नहीं थे
तू ग़र ना पूछता सबका मिला कर मोल क्या होगा
दिलों के फेर में आये जो फ़ना हो भी चुके
जो कुछ बाक़ी बचा है, हड्डियों का खोल ही होगा
कुछ पाँच सात ही मोती संजोए फिरता हूँ
मेरी माला से जमाने का तोल क्या होगा
क़यामत उनके लिए जो अभी हर रोज़ मिलते हैं
की ‘जन्नत’ कल तलक वादे वफ़ा का बोल क्या होगा
- नवीन कुमार ‘जन्नत’
“Soulful Hindi & Urdu Shayari, English poetry, reflective articles & quotes by Naveen Kumar Jannat capturing life, love, nostalgia.”