ना पूछियेगा की वफ़ा क्या है
जिगर के मर्ज़ की दवा क्या है
यूँ कहने को तो आबादी बहुत है
दिल पे एक नाम है ज़रा सा है
तेरा आँचल मेरा जहाँ मेरा नामोनिशां है
तेरी चुनरी से बाहर देखा ज़लज़ला सा है
की दुनिया पूछती है मैंने यहाँ क्या पाया
बेचारे लोग इन्होंने तुम्हें देखा कहां है
तेरी आँखों ने जो कहा मेरा ईमान हुआ
तेरे लफ़्ज़ों से ज़्यादा गीता में लिखा क्या है
की तेरे नूर से दीवाना हुए जाता हूँ
तुम्हें देखा है तबसे चाँद सिरफिरा सा है
- नवीन कुमार ‘जन्नत’