नाम | Kaho Jannat | Shayari

ना पूछियेगा की वफ़ा क्या है
जिगर के मर्ज़ की दवा क्या है

यूँ कहने को तो आबादी बहुत है
दिल पे एक नाम है ज़रा सा है

तेरा आँचल मेरा जहाँ मेरा नामोनिशां है
तेरी चुनरी से बाहर देखा ज़लज़ला सा है

की दुनिया पूछती है मैंने यहाँ क्या पाया
बेचारे लोग इन्होंने तुम्हें देखा कहां है

तेरी आँखों ने जो कहा मेरा ईमान हुआ
तेरे लफ़्ज़ों से ज़्यादा गीता में लिखा क्या है

की तेरे नूर से दीवाना हुए जाता हूँ
तुम्हें देखा है तबसे चाँद सिरफिरा सा है

- नवीन कुमार ‘जन्नत’