काश की ये ज़िंदगी बस एक मजाक होती
चाँद नहीं ना सही पर आफ़ताब होती
या तो बचपन जाता ना, या की आया ही ना होता
काश की दादी के क़िस्सों की ना याद होती
यौवन रंग अन्मना है, सुंदर है उत्साही है
काश ज़िंदगी यहां हर पल जवान होती
फिर दूरियाँ बढ़ती हैं सफर लम्बे हो जाते हैं
काश की रस्ते तो होते मंज़िले ना होती
कभी उसके सुर्ख़ लबों पर बस नाम मेरा होता था
काश मेरी भी क़लम की दो जुबान होती
दिल बदल जाते हैं और जज़्बात की क़ीमत ही क्या
काश की वादों औ क़समों की म्यान होती
कुछ सिरफिरे जी लेते हैं दर्दों में और यादों में ही
काश की ‘जन्नत’ मेरी यूँ ना ब्यान होती
- नवीन कुमार ‘जन्नत’
“Soulful Hindi & Urdu Shayari, English poetry, reflective articles & quotes by Naveen Kumar Jannat capturing life, love, nostalgia.”