काश की ये ज़िंदगी | Poetry | Kaho Jannat

काश की ये ज़िंदगी बस एक मजाक होती
चाँद नहीं ना सही पर आफ़ताब होती

या तो बचपन जाता ना, या की आया ही ना होता
काश की दादी के क़िस्सों की ना याद होती

यौवन रंग अन्मना है, सुंदर है उत्साही है
काश ज़िंदगी यहां हर पल जवान होती

फिर दूरियाँ बढ़ती हैं सफर लम्बे हो जाते हैं
काश की रस्ते तो होते मंज़िले ना होती

कभी उसके सुर्ख़ लबों पर बस नाम मेरा होता था
काश मेरी भी क़लम की दो जुबान होती

दिल बदल जाते हैं और जज़्बात की क़ीमत ही क्या
काश की वादों औ क़समों की म्यान होती

कुछ सिरफिरे जी लेते हैं दर्दों में और यादों में ही
काश की ‘जन्नत’ मेरी यूँ ना ब्यान होती

- नवीन कुमार ‘जन्नत’