सुनो जरा,
मैं ठीक हूँ,
जहां भी हूँ
उम्मीद है तुम ठीक हो,
जहां भी हो
सुनो जरा फंसा सा हूँ,
दुनिया में दारी में
उम्मीद है आजाद हो,
जैसे भी हो
सुनो जरा,
याद मेरी,
आती है क्या
या अब भी राजदार हो,
राजी भी हो
सुनो जरा,
भगवान आखिर,
बन गये क्या
या अब भी महज़ इंसान हो,
बाकी भी हो
सुनो जरा,
वो घर तुम्हारा,
तुमसे ही था,
लौट आना अगर गुमराह हो,
राही भी हो
नवीन कुमार ‘जन्नत’