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मेरा प्रेम तुम्हारा सार कहाँ | Poetry on Radha Krishna | Naveen Kumar Jannat

विदित सृष्टि को हे ! केशव
समय तुम्हारे पार कहाँ
विध माया का स्वयं रूप
कोई माया प्रतिकार कहाँ
तुम काल ताल के स्वामी हो
मोह पाश प्रेम निज स्वार्थ कहाँ
तुम स्त्री रूप पर मोहित हो
राधा को ये स्वीकार कहाँ
हे छद्म तुम्हारे नयन भरन
कोई गोपी का रंग रास कहाँ
ठहरो माधो ! तुम जानो तो
राधा को कोई आस कहाँ
मुरली भर लो अधरों पर रे
होरी के गीत मल्हार कहाँ
छुपकर कदम्ब से तकते हो
सावन का ये ब्यौहार कहाँ

विदित सृष्टि को हे अनन्त !
मेरा प्रेम तुम्हारा सार कहाँ !!