नाउम्मीद सा होना भी तो अच्छा नहीं लगता
हो कर के ना होना भी तो अच्छा नहीं लगता
आँखों से टपकते हुए आंसू भी चूमे थे
चुपचाप अब रोना भी तो अच्छा नहीं लगता
एक और रखो इश्क़ वफ़ा मान जवानी
इन्सान ना होना भी तो अच्छा नहीं लगता
माना कि मेरा ज़िक्र भी बदनाम कर देगा
बेनाम सा होना भी तो अच्छा नहीं लगता
अहसान है कि ज़िंदा हूँ और जी रहा हूँ मैं
अहसास ना होना भी तो अच्छा नहीं लगता
मुड़कर नहीं देखा जो बुलाती रही सुख़न
‘जन्नत’ तेरा होना भी तो अच्छा नहीं लगता