मेरा ज़िक्र भी बदनाम कर देगा | Hindi Shayari | Naveen Kumar Jannat

नाउम्मीद सा होना भी तो अच्छा नहीं लगता
हो कर के ना होना भी तो अच्छा नहीं लगता

आँखों से टपकते हुए आंसू भी चूमे थे
चुपचाप अब रोना भी तो अच्छा नहीं लगता

एक और रखो इश्क़ वफ़ा मान जवानी
इन्सान ना होना भी तो अच्छा नहीं लगता

माना कि मेरा ज़िक्र भी बदनाम कर देगा
बेनाम सा होना भी तो अच्छा नहीं लगता

अहसान है कि ज़िंदा हूँ और जी रहा हूँ मैं
अहसास ना होना भी तो अच्छा नहीं लगता

मुड़कर नहीं देखा जो बुलाती रही सुख़न
‘जन्नत’ तेरा होना भी तो अच्छा नहीं लगता