फ़िराक़ | Poetry | Naveen Kumar Jannat

कुछ नये चेहरे बनाने की फ़िराक़ मे
काफी पुराने लिबाज़ छोड़ आया हूँ

लूटने ये मस्तियां शबाब-ए-हुस्न की
मयकदे की महफिलें भी छोड़ आया हूँ

नादान ही रहा कि इश्क की नुमाइश मे
दोस्तों की गालियाँ भी मोड आया हूँ

अब जरा सच्चाई से देख तो ‘जन्नत’
किस के लिए अब्बा का घर छोड़ आया हूँ

नवीन कुमार ‘जन्नत’