मेरी ख्वाहिशें | Poetry | Naveen Kumar Jannat

कहीं से सितारों सजाने तो उतरो
मेरी ख्वाहिशें आज दुल्हन बनेंगी

मेरा दिल मुकम्मल नहीं घर लगा
किसी और का घर तो रोशन करेंगी

मेरे आंसुओं पे भरोसा नहीं है
किसी और चेहरे पे बेशक लूटेंगी

कि ‘जन्नत’ नज़र अब वो दिन आ गया
मेरी यादें मुझको दफन जब करेंगी