जी बहुत हो गया | Poetry | Naveen Kumar Jannat

जी बहुत हो गया, अपनों मे आना छोड़ दो तुम
जी बहुत हो गया, सपनों मे आना छोड़ दो तुम

तुम्हारी आंख हैं की चांद हैं की है खुदाई
जी बहुत हो गया, फोटो खिंचाना छोड़ दो तुम

कलेजा चीर जाती है जी वो मुस्कान गुलाबी
जी बहुत हो गया, हंसना हंसाना छोड़ दो तुम

कि तुम गुस्से में शायद और निखर आये हो
जी बहुत हो गया, जलना जलाना छोड़ दो तुम

रहे ‘जन्नत’ तुम्हारी हिज्र से आबाद सदा
जी बहुत हो गया, गजलें सजाना छोड़ दो तुम