वस्ल करती है हिज्र करती है
दर्द का रोज जिक्र करती है
जिन्दगी तेरे बाद खुद ही से
दर्द देती है फिक्र करती है
किसी रिश्ते में दम नहीं लगता
कोई ज्यादा या कम नहीं लगता
आह मेरी है वाह भी मुझी से
अब किसी से भी हम नहीं लगता
अब चलूं अपनी जिंदगी को फिर थाम लूं
अपनी तन्हाईयों को नया काम दूं
बहुत कर चुका फिक्रें जतनें जिरह
अब जरा तो वफा को भी आराम दूं
बोलना सीख रहा हूँ, सीख जाऊँगा
तोडना सीख रहा हूँ, सीख जाऊँगा
तुमसा होना मगर आसान बहुत है
तुम्हीं से सीख रहा हूँ, सीख जाऊँगा
देखो, तुम चाह कर भी नही जा पायी हो
मेरी किताब के हर शब्द पर उतर आयी हो ...
तिनका तिनका सा जोडा था तुमको
तिनका तिनका ही बच गया हूं अब
सिमटा सिमटा सा बिखरा बिखरा सा
सबको अच्छा ही लग रहा हूं अब
तुम बिन कितना सूना सूना कितना ओझल सब कुछ
तुम संग अनवरत बहता अब कितना बोझल सब कुछ
तुम्हारे हाथ में खंजर दिया गया होगा
ठीक सीने में दागना कहा गया होगा
जिस ऐहतिराम से तुम मेरा नाम लेती थी
किसी रक़ीब से मुश्किल सहा गया होगा
~ नवीन कुमार 'जन्नत'