© नवीन कुमार ‘जन्नत’
रंग मुस्कान के स्याही रखना
मेरे होने की गवाही रखना
एक वादा जो निभा लो ‘जन्नत’
एक वादे की कमाई रखना
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तुम्हें महसूस कर रहा हूँ मैं
मोहब्बत फिर समझ रहा हूँ मैं
बहुत नज़दीक आना चाहता हूँ
सो खुद से दूर कर रहा हूँ मैं
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अब चलूं अपनी जिंदगी को फिर थाम लूं
अपनी तन्हाईयों को नया काम दूं
बहुत कर चुका फिक्रें जतनें जिरह
अब जरा तो वफा को भी आराम दूं
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बोलना सीख रहा हूँ, सीख जाऊँगा
तोलना सीख रहा हूँ, सीख जाऊँगा
तुमसा होना मगर आसान बहुत है
तुम्हीं से सीख रहा हूँ, सीख जाऊँगा
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बरबाद हुये तुमसे मिलके तुमसे मिलकर आबाद रहे
इन आंखों मे कुछ रहा नहीं तुमसे मिलकर बस ख्वाब रहे
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कभी फूलों को भी गिरने से डर लगा है भला
कौन ख़ुशबू को मिट्टी में दफ़न कर पाया है
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किसी रिश्ते में दम नहीं लगता
कोई ज्यादा या कम नहीं लगता
आह मेरी है वाह भी मुझी से
अब किसी से भी हम नहीं लगता
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जब तब दुनिया से सामना होता है
तब तब महसूस करता हूँ, कि
मैं बहुत अच्छा आदमी हूँ
लेकिन खुद का सच जानता हूं,
तो फिर सोचता हूँ, कि
अगर मैं ही बेहतर हूँ,
तो दुनिया क्या ही है?
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बादल बिजली बरगद बेमन बस बेमानी बात
रिमझिम झिलमिल सरसर सनसन सब बेमानी बात
तुम तक ग़र ना पहुँचे कंगन चूनर मेंहदी हार
तुम बिन ‘जन्नत’ बरखा सावन सब बेमानी बात
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कभी सूरज सा ढल ही जाऊंगा
याद पेड़ों की पत्तियों सी रखना
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वक्त और तुम, फिर लौट कर नहीं आये
हम रहे मस्त, पर कुछ और ना जुटा पाये
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मुझे तो रखा था बिसारे कहीं
थी सम्मुख मगर थी किनारे कहीं
मुझे देख रस्ता बदलती रहीं
तुम्हें कैसे याद आ गयी री सखी”
अभी सांस काफी हैं धरलो सबर
अभी दुनिया बाकी है रखलो नज़र
अभी तुमको मेरी जरूरत नहीं
तुम्हें कैसे याद आ गयी री सखी
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हमको खोने की जल्दबाजी में
खुद को खुद से न भूल जाना तुम
दूर जाने को चांद तक जाओ
मगर हमीं में लौट आना तुम
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नींद से दुश्मनी कर बैठा हूँ
सपने ऐसे कहाँ संजोए थे
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जब्कि एक बूँद गिरी है मुझ पर
ख़्याल रह रह के तेरा आता है
यूँ तो सावन भी लौट आया मगर
एक तू है कि नहीं आता है
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सुर्ख से सुर्ख़ियाँ बन जाना भी तो ठीक नहीं
चाँद रे धुँध का बहाना भी तो ठीक नहीं
तू वक्त को थोडा तोड़ मरोड़ कर ले रे
चाँद इतना भी तो इठलाना तेरा ठीक नहीं
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इम्तिहान ले मौला, पर दर्द कुछ कम कर
होंठ हंसते भी हैं तो आँख रोक लेती हैं