क्या खाक ज़कात

तुम रहो रंगीन तुम्हें सब देखेंगे 
हम पे जो बीतेगी उसे हम देखेंगे 

तुम नाज़ करो हुस्न के दीवानों पर
इतराये हुए चश्म भी हम देखेंगे 

ठान लो कि इश्क कर ही डालोगे 
इश्तिहार--इश्क भी हम देखेंगे 

अब एक दो की बात बेईमानी है
महफिल में गिरा जाम सभी देखेंगे 

जन्नत’ ना जुदाई की कोई बात कहो
कुछ शहर उसे बेगुमान देखेंगे

तुम दिल ही अता कर सके क्या खाक ज़कात 
उसकी चौखट पे अभी कत्ल--आम देखेंगे 

- नवीन कुमार ‘जन्नत’