इलाज करते करते
बीमार हो रहा हूँ
खुद अपनी शायरी का
शिकार हो रहा हूँ
इ्श्क और काफिरी मे
फ़र्क़ इतना नजर है
इक सांस जी रहा हूँ
इक सांस मर रहा हूँ
तुम्हें सुकून मिले
मैं रहूं ना भी रहूं
मेरी बेचैनी को
यही बतला रहा हूँ
मोहब्बत तुमसे मगर
बहुत जरूरी थी
हर इक इन्सान से अब
थोड़ा घबरा रहा हूँ